Amitabh Bachchan
अमिताभ बच्चन
Amitabh Bachchan अमिताभ बच्चन हिंदी सिनेमा का एक ऐसा नाम है जिनके बिना हिन्दी सिनेमा अधुरा है | 80 के दशक से लोगो के दिलो पर राज करने वाले Angry Young Man से फिल्मो की शुरुवात से लेकर अब तक अलग अलग पात्रो के जरिये दर्शको को खूब लुभाया जिसके कारण उन्हें बॉलीवुड का शहंशाह कहा जाता है | वैसे कई फ़िल्मी कलाकार 60 की उम्र पार करने के बाद सिनेमा से दूर हो जाते है लेकिन उन्होंने सिनेमा को कभी नही छोड़ा और आज भी अपने दमदार अभिनय की बदौलत कई फिल्मो में उन्होंने उम्दा प्रदर्शन किया है | राजेश खन्ना के बाद बॉलीवुड का सुपरस्टार कहलाने वाले Amitabh Bachchan अमिताभ बच्चन का जादू आज भी लोगो के सिर चढकर बोल रहा है | अद्भुद व्यक्तित्व ,जानदार आवाज , चेहरे पर तेज उन सब गुणों के कारण Amitabh Bachchan अमिताभ बच्चन आज भी लोगो के दिलो पर राज कर रहे है | आइये आज हम आपको आज उसी शताब्दी पुरुष Amitabh Bachchan अमिताभ बच्चन की सम्पूर्ण जीवनी से रूबरू करवाते है
अमिताभ बच्चन का प्रारम्भिक जीवन
Amitabh Bachchan अमिताभ बच्चन का जन्म 11 अक्टूबर 1942 को उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद जिले में हुआ था | उनके पूर्वज भी उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले से इलाहाबाद आये थे | उनके पिता श्री हरिवंशराय बच्चन जाने माने हिंदी कवियों में से एक थे | उनके पिता सांस्कृतिक रूप से समृद्ध उत्तर पदेश के अवध जिले के रहने वाले थे | अमिताभ बच्चन आज भी अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि हरिवंश राय बच्चन का पुत्र होना मानते है उनके पिता अनुशासन प्रिय ,स्वतंत्र विचारों वाले व्यक्ति थे | उन्होंने अपने पुत्र के हर फैसले में उनका साथ दिया था |
Amitabh Bachchan अमिताभ बच्चन की माँ का नाम तेजी बच्चन थी जो कराची के सिख परिवार से थी | वह भी पाश्चात्य विचारो वाली महिला थी लेकिन उन्हें अपनी मान्यताओ पर दृढ़ विश्वास रहा था | उनके माता पिता दोनों अलग अलग सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से संबधित थे | यह अलग अलग संस्कृतियों का मिश्रण अमिताभ में साफ देखने को मिलता है | अच्छा स्वभाव उन्होंने अपने माता पिता से पाया है जबकि उनको अपना रंग रूप अपनी माता से विरासत में मिला है |
Amitabh Bachchan अमिताभ बच्चन के माता पिता ने शुरवात में उनका नाम इन्कलाब रखा था क्योंकि स्वतंत्रता संग्राम के उस दौर में “इन्कलाब जिंदाबाद ” का नारा खूब जोरो पर था और उनके पिता उससे प्रेरित थे | लेकिन हरिवंशराय बच्चन के मित्र सुमित्रानंदन पन्त के सुझाव पर उन्होंने अपने पुत्र का नाम अमिताभ कर दिया जिसका मतलब होता है “एक ऐसा प्रकाश जिसका कभी अंत ना हो “| हालांकि उनका उपनाम श्रीवास्तव था लेकिन अमिताभ के पिता अपनी सभी कविताओं में अपना छोटा नाम बच्चन लिखा करते थे जिसके कारण अमिताभ के आगे भी उन्होंने बच्चन नाम दे दिया |
Amitabh Bachchan अमिताभ बच्चन की प्रारम्भिक शिक्षा इलाहाबाद में ही हुयी | उसके बाद अमिताभ ने नैनीताल के एक बोर्डिंग स्कूल में आगे की शिक्षा प्राप्त की | अमिताभ विज्ञान से इतने प्रभावित हुए कि उनमे वैज्ञानिक बनने की इच्छा जागृत हुयी | साथ ही साथ वो स्वफुल में होने वाले नाटको आदि में भाग लेते रहे | इस दौरान उन्होंने बहुत से इनाम भी जीते | इस तरह उनमे एक कलाकार की प्रतिभा आरम्भ से ही विधमान थी | उनकी रूचि विज्ञान में इतनी बढ़ गयी कि उन्होंने दिल्ली के जाने माने सेंट स्टेफन कॉलेज की जगह किरोड़ीमल कॉलेज में विज्ञान विषय में दाखिला ले लिया |
कॉलेज में उन्होंने दो विषयों में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की | साथ ही साथ अमिताभ ने कॉलेज के रंगमंच “द प्लेयर्स ” में भी भाग लिया | यहा उन्हें अपने अभिनय को निखारने का अवसर मिला और वही से एक महान कलाकार का जन्म हुआ | उनके पिता ने दिल्ली में “The Little Theatre Gallery” में शेक्सपियर के संवादों का हिंदी में अनुवाद शूरू किया | उन्होंने एक रंगमंच संस्था की भी शुरवात की | अमिताभ ने भी नाटको में अभिनय किया | उनकी “ओथेलो ” और “जुलियस सीजर ” नामक नाटको की काफी प्रशंशा हुयी |
दिल्ली में कई जगह पर उन्होंने नौकरी की तलाश की परन्तु कही भी उन्हें आशानुरूप नतीजे नही मिले | यहा तक कि आकाशवाणी में भी उन्हें आवाज भारी होने के कारण नौकरी नही मिली | इससे वो बहुत दुखी हुयी | एक दिन बेरोजगारी से हतोत्साहित होकर उन्होंने अपने कॉलेज के मित्रो के साथ कोलकाता जाने का फैसला किया और वहा पर नौकरी ढूँढना जारी रखा | कोलकाता में भी कुछ हाथ ना लगने पर उन्होंने बम्बई में अपनी किस्मत आजमाने का फैसला किया जो उनके जीवन का निर्णायक मोड़ साबित हुआ
अमिताभ बच्चन के फ़िल्मी करियर की शुरुवात 1969–1972
Amitabh Bachchan अमिताभ बच्चन जब नौकरी से हताश हो गये तब उन्होंने अपनी प्रतिभा को पहचानते हुए अभिनय में हाथ आजमाने का विचार किया | बच्चन ने अपने फिल्मो में अपने करियर की शुरवात मृणाल सेन की राष्ट्रीय पुरुस्कार विजेता फिल्म “भुवन शोम” में voice narrator से की जिसके लिए उन्हें 300 रूपये मेहनताना मिला था | उसी दौरान उस दौर के मशहूर निर्देशक के अब्बास ने एक जौहरी के तरह अमिताभ जैसे हीरे की पहचान की और 1969 में आयी “सात हिन्दुस्तानी ” फिल्म में अभिनय करने का मौका दिया , जो बतौर अभिनेता उनकी पहली फिल्म थी |लेकिन दुर्भाग्यवश ये फिल्म सफल नही हुयी और अमिताभ के अभिनय पर किसी का ध्यान नही गया | लेकिन उन्होंने हिम्मत नही हारी और प्रयास जारी रखा |
अपनी पहली फिल्म के बाद एक के बाद एक उनकी फिल्मे फ्लॉप होती जा रही थी तब 1971 में उनकी तकदीर में मोड़ ली जब उन्हें उस दौर के सुपरस्टार राजेश खन्ना के साथ “आनन्द ” फिल्म में काम करने का मौका मिला | उस समय तक राजेश खन्ना तो सुपरस्टार बन चुके थे और उनकी शोहरत चरम सीमा पर थी | इसका फायदा Amitabh Bachchan अमिताभ को भी मिला और “आनन्द ” फिल्म में उन्होंने अपने दमदार अभिनय को पेश किया , जिसमे उन्होंने के डॉक्टर के किरदार को बखूबी निभाया और अपनी प्रतिभा को साबित किया | इस फिल्म के लिए उन्हें फिल्मफेयर के सर्वश्रेष्ठ सहायक कलाकर के पुरुस्कार से सम्मानित किया गया |
Amitabh in Anand“आनन्द” में उनके अभिनय को देखते हुए फ़िल्मकार उनके साथ फिल्म बनाने को आने लगे और 1971 में उन्होंने “परवाना” फिल्म में उन्होंने अपना पहला नेगेटिव रोल निभाया था जिसमे वो प्यार करने वाले से हत्यारे बन जाते है | इसी साल सुनील दत्त की फिल्म “रेशम और शेरा ” आयी जिसमे उन्होंने गूंगे का किरदार निभाया | इसके बाद उन्होंने अपनी future wife जय भादुड़ी की फिल्म गुड्डी में guest appearance में नजर आये | उन्होंने राजेश खन्ना की एक ओर सुपरहिट फिल्म बावर्ची में सूत्रधार का रोल अदा किया | 1972 में वो कॉमेडी फिल्म “बॉम्बे टू गोवा” में नजर आये | शुरुवात की उनकी कई फिल्मे सफल नही रही लेकिन अब उनका भाग्य बदलने वाला था |
Rise to stardom
लगातार बुरे वक्त से झूझने के बाद काफी इंतजार के बाद उनकी पहली सफल फिल्म आयी | वह फिल्म जिसमे उनके तीन वर्ष की असफलता भरी जिन्दगी का अंत करते हुए उनकी जिन्दगी का रुख बदल दिया | वो फिल्म थी 1973 में आयी प्रकाश महरा की फिल्म “जंजीर “ | यह उनकी तेरहवी फिल्म थी | इस फिल्म में एक अनाथ की कहानी थी जो कि अपने माता पिता का खून होते हुए देखता है और बड़ा होकर पुलिस ऑफिसर बनता है | इस फिल्म में भारतीय सिनेमा ने नायक की छवि बदल दी |
Amitabh Bachchan अमिताभ इस फिल्म से “Angry young Man” के नामस इ जाने जाने लगे और एक नये नायक का जन्म हुआ | इस फिल के बाद अमिताभ ने पीछे मुडकर कभी नही देखा और आगे बढ़ते ही चले गये | यह फिल्म उस दौर की सबसे सफल फिल्मो में से एक थी और उस साल की सबसे ज्यादा पैसा कमाने वाली फिल्म बनी | इस फिल्म से अमिताभ बच्चन रातो रात सुपरस्टार बन गये | इसके बाद 1973 में एक बार फिर उन्होंने राजेश खन्ना के साथ “नमक हराम ” फिल्म में कम किया |
“नमक हराम ” ऋषीकेश मुखर्जी द्वारा निर्मित दो दोस्तों की कहानी पर आधारित है जिसमे अमिताभ ने एक उद्योगपति के पुत्र की भूमिका निभाई थी | इस फिल्म में उनके दोस्त का किरदार राजेश खन्ना ने निभाया था परन्तु इस फिल्म में राजेश खन्ना होने के बाव्जुफ़ अमिताभ बच्चन सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहे और इस फिल्म के लिए उन्हें फिर से सर्वश्रेष्ठ सहायक कलाकार के फिल्फयेर अवार्ड से सम्मानित किया गया |
1974 अमिताभ बच्चन Amitabh Bachchan कई फिल्मो जैसे कुंवारा बांप और दोस्त फिल्मो में guest appearances में नजर आये थे | इसी साल वो मनोज कुमार की सुपरहिट फिल्म “रोटी कपड़ा और मकान ” में सहायक कलाकार के तौर पर नजर आये जो काफी सफल रही थी | इसी साल उन्होंने “मजबूर” फिल्म में मुख्य भूमिका निभायी जो काफी सफल रही | 1975 की शुरुवात में उन्होंने अलग अलग तरह की फिल्मो में काम करना शूरू किया जिसमे कॉमेडी फिल्म “चुपके चुपके” से लेकर रोमांटिक ड्रामा फिल्म “मिली ” में उन्होंने काम किया था |
1975 में वो अपने फ़िल्मी करियर और हिंदी सिनेमा की दो बड़ी फिल्मो में बतौर मुख्य अभिनेता नजर आये | 1975 में उनकी पहली फिल्म यश चोपड़ा निर्देशित “दीवार ” फिल्म थी जिसमे उन्होंने शशी कपूर के साथ काम किया था | यह फिल्म ना केवल सुपरहिट रही बल्कि इसे इंडियाटाइम्स द्वारा Top 25 Must See Bollywood Films में चुना गया | इस फिल्म में उनके डायलॉग को कभी नही भुला जा सकता है जिसमे सबसे प्रसिद्ध डायलॉग है “मेरे पास गाडी है बंगला है बैंक बैलेंस है , तुम्हारे पास क्या है “ |
1975 में उनकी दुसरी बड़ी फिल्म “शोले ” आयी जिसमे उन्होंने धर्मेद के साथ मुख्य अभिनेता का रोल निभाया |इस फिल्म को भी “दीवार” की तरह Top 25 Must See Bollywood Films में चुना गयाऔर BBC ने तो इस फिल्म को “Film of the Millennium” घोषित कर दिया | इस फिल्म में उनके दद्वारा निभाए “जय” के रोल को कौन भुला सकता है जो कम बोलकर भी बहुत गहरी बाते कह जाता है | शोले ने Amitabh Bachchan अमिताभ के करियर को चार चाँद लगा दिए और एक के बाद एक हर फिल में उनका अभिनय बेहतर होता गया |Amitabh in Sholay
1976 में एक बार फिर यश चोपड़ा ने उन्हें अपनी फिल्म “कभी कभी ” में मुख्य अभिनेता का किरदार दिया और इस फिल्म के जरिये उनकी छवि “Angry young Man” से हटकर एक रोमांटिक हीरो के रूप में नजर आने लगी | इस फिल्म के लिए उनको Filmfare Best Actor Award भी मिला | इसी साल उन्होंने अदालत फिल्म में बाप बेटे का डबल रोल किया था | 1977 में फिर उनकी एक बड़ी फिल्म “अमर अकबर अन्थोनी ” आयी जिसमे उन्होंने अन्थोनी का किरदार निभाकर दर्शको को खूब हंसाया | यह फिल्म उस साल की सबसे ज्यादा कमाऊ फिल्म थी | इसी साल उनकी दुसरी सफल फिल्मे “परवरिश ” और “खून पसीना ” आयी |
1978 में फिर से दो बड़ी फिल्मो “कसमे वादे” और “डॉन” में डबल रोल निभाते हुए नजर आये | डॉन फिल्म से उन्होंने अभिनय के सारे रंग दिखाए जिसकी वजह से उन्हें Filmfare Best Actor Award भी मिला | इसके बाद “त्रिशूल” और “मुक्कदर का सिकन्दर” में भी उनका दमदार अभिनय नजर आया | 1979 में अमिताभ बच्चन एक ओर सुपरहिट फिल्म “सुहाग ” में नजर आये और इसी साल उन्होंने Mr. Natwarlal, ,काला पत्थर और The Great Gambler जैसी फिल्मे की | 1980 में “दोस्ताना ” उनकी सबसे सफल फिल्म थी |
1980 के दशक में Amitabh Bachchan अमिताभ ने सिलसिला , शान , शक्ति , बलराम , नसीब और लावारिस जैसी सफल फिल्मे की | 1982 में उन्होंने एक बार फिर “सत्ते पे सत्ता” फिल्म में डबल रोल निभाया और उसी साल “देश प्रेमी ” भी उनकी दुसरी सफल फिल्म थी | 1983 में महान फिल्म में पहली बार उन्होंने ट्रिपल रोल निभाया और उसी साल “कुली” फिल्म आयी जो फिल्म तो काफी सफल रही लेकिन उस फिल्म एम् हुए हादसे की वजह से उनके करियर पर विराम सा लग गया था |
कुली फिल्म के दौरान जानलेवा दुर्घटना
26 जुलाई 1982 में “कुली” फिल्म के दृश्य फिल्माते वक्त शूटिंग के दौरान पुनीत इस्सर के साथ एक फाइट सीन करते वक्त उन्हें पेट में बहुत गजब चोट आयी | इस फिल्म में गलती से पुनीत इस्सर का मुक्का उनके पेट को लग गया था और इसमें उनका काफी खून बह गया था | तुंरत उन्हें हॉस्पिटल ले जाया गया और वो मौत के नजदीक पहुच गये थे | उस समय ऐसा लग रहा था मानो वक्त थम सा गया हो | इस घटना ने साबित कर दिया था कि जनता उन्हें कितना चाहती है | Amitabh Bachchan अमिताभ के सभी चाहने वाले लोग अमिताभ की लम्बी उम्र की प्रार्थना करने लगे ,व्रत करने लगे और कई लोगो ने तो हवन भी करवाए |
यहा तक कि एक रिक्शा चालक अपनी जिन्दगी भर की कमाई खर्च कर मुम्बई आ गया और वह भी भगवान से उनकी जिन्दगी की भीख मांगने लगा | इस मुश्किल घड़ी में लोगो की दुआओं से वो बच गये और उसके बाद उनके चाहने वालों की भीड़ हॉस्पिटल नेकतार में खडी हो गयी | इसी वजह से 1983 में उनकी फिल्म “कुली ” को अपार सफलता मिली और “कुली” उस साल की सबसे ज्यादा कमाऊ फिल्म बनी | इस फिल्म के अंत को मनमोहन देसाई ने बदल दिया क्योंकि वास्तव स्क्रिप्ट के अनुसार तो इस फिल्म के अंत में अमितभ की मौत हो जाती है लेकिन मनोहन देसाई ने सोचा कि जिस आदमी ने असल जिन्दगी में मौत से विजय पाली उसको स्क्रीन पर मरा हुआ कैसे बता सकते है | इसी वजह से उन्होंने इस फिल्म का अंत बदल दिया था |
अमिताभ बच्चन की राजीनति में किस्मत की आजमाइश
1984 में उन्होंने फिल्मो से ब्रेक लिया और राजीनति में अपनी किस्मत आजमाई और इसमें उन्होंने अपने पारिवारिक मित्र राजीव गांधी ने सहयोग किया | राजीव गांधी ने उन्हें आठवी लोकसभा चुनाव में अलाहाबाद की सीट दी और बड़े अंतर से उन्होंने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बहुगुणा को हरा दिया | हालांकि उन्हें राजनीती रास नही आयी और तीन साल बाद ही उन्होंने सांसद पद से त्यागपत्र दे दिया | उनके त्यागपत्र के साथ ही “बोफोर्स स्कैंडल ” में उनका और उनके भाई का नाम आया जिसकी वजह से उन्हें कोर्ट में घसीटा गया लेकिन बाद में उन पर कोई आरोप सिद्ध ना होने की वजह से कौर्ट से छुट्टी मिल गयी |
इस दौरान उन्होंने अपनी एक फिल्म कम्पनी ABCL की शुरवात की जो काफी घाटे में गयी | इस दौरान उनके पुराने मित्र अमर सिंह ने उनकी मदद की | इसी वजह से अमिताभ बच्चन ने उनके राजनितिक दल “समाजवादी पार्टी” को सहयोग देना आरम्भ कर दिया | Amitabh Bachchan अमिताभ बच्चन की पत्नी जया बच्चन को समाजवादी पार्टी का टिकट मिला और वो राज्यसभा सदस्य बनी | बच्चन इसके बाद राजनीती के केवल समाजवादी पार्टी को सहयोग करने लगे | |
करियर का ढलान और अस्थायी रिटायरमेंट का दौर 1988–1992
1988 में अमिताभ Amitabh Bachchan ने फिर फ़िल्मी करियर में आगाज किया और “शंहशाह” फिल्म से उन्होंने दमदार शुरुवात की | यह फिल्म तो बॉक्स ऑफिस पर काफी हिट रही लेकिन इसके बाद ही फिल्मो में उनका जादू फीका पड़ गया | 1989 में आयी फिल्म जादूगर , तूफान और मै आजाद हु बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुह गिरी | इसी बीच 1991 “हम” फिल्म में उनका दमदार अभिनय देखने का मौका मिला लेकिन उनकी चमक फीकी पड़ रही थी | 1990 में “अग्निपथ” में उंनका अलग ही अवतार नजर आया और माफिया डॉन के अपने रोल के लिए उन्हें पहला National Film Award for Best Actor मिला | 1992 में खुदा गवाह फिल्म के रिलीज होने के बाद उन्होंने पांच सालो तक फिल्मो से अस्थायी रिटायरमेंट ले लिया था |
Amitabh Bachchan अमिताभ बच्चन हिंदी सिनेमा का एक ऐसा नाम है जिनके बिना हिन्दी सिनेमा अधुरा है | 80 के दशक से लोगो के दिलो पर राज करने वाले Angry Young Man से फिल्मो की शुरुवात से लेकर अब तक अलग अलग पात्रो के जरिये दर्शको को खूब लुभाया जिसके कारण उन्हें बॉलीवुड का शहंशाह कहा जाता है | वैसे कई फ़िल्मी कलाकार 60 की उम्र पार करने के बाद सिनेमा से दूर हो जाते है लेकिन उन्होंने सिनेमा को कभी नही छोड़ा और आज भी अपने दमदार अभिनय की बदौलत कई फिल्मो में उन्होंने उम्दा प्रदर्शन किया है | राजेश खन्ना के बाद बॉलीवुड का सुपरस्टार कहलाने वाले Amitabh Bachchan अमिताभ बच्चन का जादू आज भी लोगो के सिर चढकर बोल रहा है | अद्भुद व्यक्तित्व ,जानदार आवाज , चेहरे पर तेज उन सब गुणों के कारण Amitabh Bachchan अमिताभ बच्चन आज भी लोगो के दिलो पर राज कर रहे है | आइये आज हम आपको आज उसी शताब्दी पुरुष Amitabh Bachchan अमिताभ बच्चन की सम्पूर्ण जीवनी से रूबरू करवाते है
अमिताभ बच्चन का प्रारम्भिक जीवन
Amitabh Bachchan अमिताभ बच्चन का जन्म 11 अक्टूबर 1942 को उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद जिले में हुआ था | उनके पूर्वज भी उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले से इलाहाबाद आये थे | उनके पिता श्री हरिवंशराय बच्चन जाने माने हिंदी कवियों में से एक थे | उनके पिता सांस्कृतिक रूप से समृद्ध उत्तर पदेश के अवध जिले के रहने वाले थे | अमिताभ बच्चन आज भी अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि हरिवंश राय बच्चन का पुत्र होना मानते है उनके पिता अनुशासन प्रिय ,स्वतंत्र विचारों वाले व्यक्ति थे | उन्होंने अपने पुत्र के हर फैसले में उनका साथ दिया था |
Amitabh Bachchan अमिताभ बच्चन की माँ का नाम तेजी बच्चन थी जो कराची के सिख परिवार से थी | वह भी पाश्चात्य विचारो वाली महिला थी लेकिन उन्हें अपनी मान्यताओ पर दृढ़ विश्वास रहा था | उनके माता पिता दोनों अलग अलग सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से संबधित थे | यह अलग अलग संस्कृतियों का मिश्रण अमिताभ में साफ देखने को मिलता है | अच्छा स्वभाव उन्होंने अपने माता पिता से पाया है जबकि उनको अपना रंग रूप अपनी माता से विरासत में मिला है |
Amitabh Bachchan अमिताभ बच्चन के माता पिता ने शुरवात में उनका नाम इन्कलाब रखा था क्योंकि स्वतंत्रता संग्राम के उस दौर में “इन्कलाब जिंदाबाद ” का नारा खूब जोरो पर था और उनके पिता उससे प्रेरित थे | लेकिन हरिवंशराय बच्चन के मित्र सुमित्रानंदन पन्त के सुझाव पर उन्होंने अपने पुत्र का नाम अमिताभ कर दिया जिसका मतलब होता है “एक ऐसा प्रकाश जिसका कभी अंत ना हो “| हालांकि उनका उपनाम श्रीवास्तव था लेकिन अमिताभ के पिता अपनी सभी कविताओं में अपना छोटा नाम बच्चन लिखा करते थे जिसके कारण अमिताभ के आगे भी उन्होंने बच्चन नाम दे दिया |
Amitabh Bachchan अमिताभ बच्चन की प्रारम्भिक शिक्षा इलाहाबाद में ही हुयी | उसके बाद अमिताभ ने नैनीताल के एक बोर्डिंग स्कूल में आगे की शिक्षा प्राप्त की | अमिताभ विज्ञान से इतने प्रभावित हुए कि उनमे वैज्ञानिक बनने की इच्छा जागृत हुयी | साथ ही साथ वो स्वफुल में होने वाले नाटको आदि में भाग लेते रहे | इस दौरान उन्होंने बहुत से इनाम भी जीते | इस तरह उनमे एक कलाकार की प्रतिभा आरम्भ से ही विधमान थी | उनकी रूचि विज्ञान में इतनी बढ़ गयी कि उन्होंने दिल्ली के जाने माने सेंट स्टेफन कॉलेज की जगह किरोड़ीमल कॉलेज में विज्ञान विषय में दाखिला ले लिया |
कॉलेज में उन्होंने दो विषयों में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की | साथ ही साथ अमिताभ ने कॉलेज के रंगमंच “द प्लेयर्स ” में भी भाग लिया | यहा उन्हें अपने अभिनय को निखारने का अवसर मिला और वही से एक महान कलाकार का जन्म हुआ | उनके पिता ने दिल्ली में “The Little Theatre Gallery” में शेक्सपियर के संवादों का हिंदी में अनुवाद शूरू किया | उन्होंने एक रंगमंच संस्था की भी शुरवात की | अमिताभ ने भी नाटको में अभिनय किया | उनकी “ओथेलो ” और “जुलियस सीजर ” नामक नाटको की काफी प्रशंशा हुयी |
दिल्ली में कई जगह पर उन्होंने नौकरी की तलाश की परन्तु कही भी उन्हें आशानुरूप नतीजे नही मिले | यहा तक कि आकाशवाणी में भी उन्हें आवाज भारी होने के कारण नौकरी नही मिली | इससे वो बहुत दुखी हुयी | एक दिन बेरोजगारी से हतोत्साहित होकर उन्होंने अपने कॉलेज के मित्रो के साथ कोलकाता जाने का फैसला किया और वहा पर नौकरी ढूँढना जारी रखा | कोलकाता में भी कुछ हाथ ना लगने पर उन्होंने बम्बई में अपनी किस्मत आजमाने का फैसला किया जो उनके जीवन का निर्णायक मोड़ साबित हुआ
अमिताभ बच्चन के फ़िल्मी करियर की शुरुवात 1969–1972
Amitabh Bachchan अमिताभ बच्चन जब नौकरी से हताश हो गये तब उन्होंने अपनी प्रतिभा को पहचानते हुए अभिनय में हाथ आजमाने का विचार किया | बच्चन ने अपने फिल्मो में अपने करियर की शुरवात मृणाल सेन की राष्ट्रीय पुरुस्कार विजेता फिल्म “भुवन शोम” में voice narrator से की जिसके लिए उन्हें 300 रूपये मेहनताना मिला था | उसी दौरान उस दौर के मशहूर निर्देशक के अब्बास ने एक जौहरी के तरह अमिताभ जैसे हीरे की पहचान की और 1969 में आयी “सात हिन्दुस्तानी ” फिल्म में अभिनय करने का मौका दिया , जो बतौर अभिनेता उनकी पहली फिल्म थी |लेकिन दुर्भाग्यवश ये फिल्म सफल नही हुयी और अमिताभ के अभिनय पर किसी का ध्यान नही गया | लेकिन उन्होंने हिम्मत नही हारी और प्रयास जारी रखा |
अपनी पहली फिल्म के बाद एक के बाद एक उनकी फिल्मे फ्लॉप होती जा रही थी तब 1971 में उनकी तकदीर में मोड़ ली जब उन्हें उस दौर के सुपरस्टार राजेश खन्ना के साथ “आनन्द ” फिल्म में काम करने का मौका मिला | उस समय तक राजेश खन्ना तो सुपरस्टार बन चुके थे और उनकी शोहरत चरम सीमा पर थी | इसका फायदा Amitabh Bachchan अमिताभ को भी मिला और “आनन्द ” फिल्म में उन्होंने अपने दमदार अभिनय को पेश किया , जिसमे उन्होंने के डॉक्टर के किरदार को बखूबी निभाया और अपनी प्रतिभा को साबित किया | इस फिल्म के लिए उन्हें फिल्मफेयर के सर्वश्रेष्ठ सहायक कलाकर के पुरुस्कार से सम्मानित किया गया |
Amitabh in Anand“आनन्द” में उनके अभिनय को देखते हुए फ़िल्मकार उनके साथ फिल्म बनाने को आने लगे और 1971 में उन्होंने “परवाना” फिल्म में उन्होंने अपना पहला नेगेटिव रोल निभाया था जिसमे वो प्यार करने वाले से हत्यारे बन जाते है | इसी साल सुनील दत्त की फिल्म “रेशम और शेरा ” आयी जिसमे उन्होंने गूंगे का किरदार निभाया | इसके बाद उन्होंने अपनी future wife जय भादुड़ी की फिल्म गुड्डी में guest appearance में नजर आये | उन्होंने राजेश खन्ना की एक ओर सुपरहिट फिल्म बावर्ची में सूत्रधार का रोल अदा किया | 1972 में वो कॉमेडी फिल्म “बॉम्बे टू गोवा” में नजर आये | शुरुवात की उनकी कई फिल्मे सफल नही रही लेकिन अब उनका भाग्य बदलने वाला था |
Rise to stardom
लगातार बुरे वक्त से झूझने के बाद काफी इंतजार के बाद उनकी पहली सफल फिल्म आयी | वह फिल्म जिसमे उनके तीन वर्ष की असफलता भरी जिन्दगी का अंत करते हुए उनकी जिन्दगी का रुख बदल दिया | वो फिल्म थी 1973 में आयी प्रकाश महरा की फिल्म “जंजीर “ | यह उनकी तेरहवी फिल्म थी | इस फिल्म में एक अनाथ की कहानी थी जो कि अपने माता पिता का खून होते हुए देखता है और बड़ा होकर पुलिस ऑफिसर बनता है | इस फिल्म में भारतीय सिनेमा ने नायक की छवि बदल दी |
Amitabh Bachchan अमिताभ इस फिल्म से “Angry young Man” के नामस इ जाने जाने लगे और एक नये नायक का जन्म हुआ | इस फिल के बाद अमिताभ ने पीछे मुडकर कभी नही देखा और आगे बढ़ते ही चले गये | यह फिल्म उस दौर की सबसे सफल फिल्मो में से एक थी और उस साल की सबसे ज्यादा पैसा कमाने वाली फिल्म बनी | इस फिल्म से अमिताभ बच्चन रातो रात सुपरस्टार बन गये | इसके बाद 1973 में एक बार फिर उन्होंने राजेश खन्ना के साथ “नमक हराम ” फिल्म में कम किया |
“नमक हराम ” ऋषीकेश मुखर्जी द्वारा निर्मित दो दोस्तों की कहानी पर आधारित है जिसमे अमिताभ ने एक उद्योगपति के पुत्र की भूमिका निभाई थी | इस फिल्म में उनके दोस्त का किरदार राजेश खन्ना ने निभाया था परन्तु इस फिल्म में राजेश खन्ना होने के बाव्जुफ़ अमिताभ बच्चन सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहे और इस फिल्म के लिए उन्हें फिर से सर्वश्रेष्ठ सहायक कलाकार के फिल्फयेर अवार्ड से सम्मानित किया गया |
1974 अमिताभ बच्चन Amitabh Bachchan कई फिल्मो जैसे कुंवारा बांप और दोस्त फिल्मो में guest appearances में नजर आये थे | इसी साल वो मनोज कुमार की सुपरहिट फिल्म “रोटी कपड़ा और मकान ” में सहायक कलाकार के तौर पर नजर आये जो काफी सफल रही थी | इसी साल उन्होंने “मजबूर” फिल्म में मुख्य भूमिका निभायी जो काफी सफल रही | 1975 की शुरुवात में उन्होंने अलग अलग तरह की फिल्मो में काम करना शूरू किया जिसमे कॉमेडी फिल्म “चुपके चुपके” से लेकर रोमांटिक ड्रामा फिल्म “मिली ” में उन्होंने काम किया था |
1975 में वो अपने फ़िल्मी करियर और हिंदी सिनेमा की दो बड़ी फिल्मो में बतौर मुख्य अभिनेता नजर आये | 1975 में उनकी पहली फिल्म यश चोपड़ा निर्देशित “दीवार ” फिल्म थी जिसमे उन्होंने शशी कपूर के साथ काम किया था | यह फिल्म ना केवल सुपरहिट रही बल्कि इसे इंडियाटाइम्स द्वारा Top 25 Must See Bollywood Films में चुना गया | इस फिल्म में उनके डायलॉग को कभी नही भुला जा सकता है जिसमे सबसे प्रसिद्ध डायलॉग है “मेरे पास गाडी है बंगला है बैंक बैलेंस है , तुम्हारे पास क्या है “ |
1975 में उनकी दुसरी बड़ी फिल्म “शोले ” आयी जिसमे उन्होंने धर्मेद के साथ मुख्य अभिनेता का रोल निभाया |इस फिल्म को भी “दीवार” की तरह Top 25 Must See Bollywood Films में चुना गयाऔर BBC ने तो इस फिल्म को “Film of the Millennium” घोषित कर दिया | इस फिल्म में उनके दद्वारा निभाए “जय” के रोल को कौन भुला सकता है जो कम बोलकर भी बहुत गहरी बाते कह जाता है | शोले ने Amitabh Bachchan अमिताभ के करियर को चार चाँद लगा दिए और एक के बाद एक हर फिल में उनका अभिनय बेहतर होता गया |Amitabh in Sholay
1976 में एक बार फिर यश चोपड़ा ने उन्हें अपनी फिल्म “कभी कभी ” में मुख्य अभिनेता का किरदार दिया और इस फिल्म के जरिये उनकी छवि “Angry young Man” से हटकर एक रोमांटिक हीरो के रूप में नजर आने लगी | इस फिल्म के लिए उनको Filmfare Best Actor Award भी मिला | इसी साल उन्होंने अदालत फिल्म में बाप बेटे का डबल रोल किया था | 1977 में फिर उनकी एक बड़ी फिल्म “अमर अकबर अन्थोनी ” आयी जिसमे उन्होंने अन्थोनी का किरदार निभाकर दर्शको को खूब हंसाया | यह फिल्म उस साल की सबसे ज्यादा कमाऊ फिल्म थी | इसी साल उनकी दुसरी सफल फिल्मे “परवरिश ” और “खून पसीना ” आयी |
1978 में फिर से दो बड़ी फिल्मो “कसमे वादे” और “डॉन” में डबल रोल निभाते हुए नजर आये | डॉन फिल्म से उन्होंने अभिनय के सारे रंग दिखाए जिसकी वजह से उन्हें Filmfare Best Actor Award भी मिला | इसके बाद “त्रिशूल” और “मुक्कदर का सिकन्दर” में भी उनका दमदार अभिनय नजर आया | 1979 में अमिताभ बच्चन एक ओर सुपरहिट फिल्म “सुहाग ” में नजर आये और इसी साल उन्होंने Mr. Natwarlal, ,काला पत्थर और The Great Gambler जैसी फिल्मे की | 1980 में “दोस्ताना ” उनकी सबसे सफल फिल्म थी |
1980 के दशक में Amitabh Bachchan अमिताभ ने सिलसिला , शान , शक्ति , बलराम , नसीब और लावारिस जैसी सफल फिल्मे की | 1982 में उन्होंने एक बार फिर “सत्ते पे सत्ता” फिल्म में डबल रोल निभाया और उसी साल “देश प्रेमी ” भी उनकी दुसरी सफल फिल्म थी | 1983 में महान फिल्म में पहली बार उन्होंने ट्रिपल रोल निभाया और उसी साल “कुली” फिल्म आयी जो फिल्म तो काफी सफल रही लेकिन उस फिल्म एम् हुए हादसे की वजह से उनके करियर पर विराम सा लग गया था |
कुली फिल्म के दौरान जानलेवा दुर्घटना
26 जुलाई 1982 में “कुली” फिल्म के दृश्य फिल्माते वक्त शूटिंग के दौरान पुनीत इस्सर के साथ एक फाइट सीन करते वक्त उन्हें पेट में बहुत गजब चोट आयी | इस फिल्म में गलती से पुनीत इस्सर का मुक्का उनके पेट को लग गया था और इसमें उनका काफी खून बह गया था | तुंरत उन्हें हॉस्पिटल ले जाया गया और वो मौत के नजदीक पहुच गये थे | उस समय ऐसा लग रहा था मानो वक्त थम सा गया हो | इस घटना ने साबित कर दिया था कि जनता उन्हें कितना चाहती है | Amitabh Bachchan अमिताभ के सभी चाहने वाले लोग अमिताभ की लम्बी उम्र की प्रार्थना करने लगे ,व्रत करने लगे और कई लोगो ने तो हवन भी करवाए |
यहा तक कि एक रिक्शा चालक अपनी जिन्दगी भर की कमाई खर्च कर मुम्बई आ गया और वह भी भगवान से उनकी जिन्दगी की भीख मांगने लगा | इस मुश्किल घड़ी में लोगो की दुआओं से वो बच गये और उसके बाद उनके चाहने वालों की भीड़ हॉस्पिटल नेकतार में खडी हो गयी | इसी वजह से 1983 में उनकी फिल्म “कुली ” को अपार सफलता मिली और “कुली” उस साल की सबसे ज्यादा कमाऊ फिल्म बनी | इस फिल्म के अंत को मनमोहन देसाई ने बदल दिया क्योंकि वास्तव स्क्रिप्ट के अनुसार तो इस फिल्म के अंत में अमितभ की मौत हो जाती है लेकिन मनोहन देसाई ने सोचा कि जिस आदमी ने असल जिन्दगी में मौत से विजय पाली उसको स्क्रीन पर मरा हुआ कैसे बता सकते है | इसी वजह से उन्होंने इस फिल्म का अंत बदल दिया था |
अमिताभ बच्चन की राजीनति में किस्मत की आजमाइश
1984 में उन्होंने फिल्मो से ब्रेक लिया और राजीनति में अपनी किस्मत आजमाई और इसमें उन्होंने अपने पारिवारिक मित्र राजीव गांधी ने सहयोग किया | राजीव गांधी ने उन्हें आठवी लोकसभा चुनाव में अलाहाबाद की सीट दी और बड़े अंतर से उन्होंने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बहुगुणा को हरा दिया | हालांकि उन्हें राजनीती रास नही आयी और तीन साल बाद ही उन्होंने सांसद पद से त्यागपत्र दे दिया | उनके त्यागपत्र के साथ ही “बोफोर्स स्कैंडल ” में उनका और उनके भाई का नाम आया जिसकी वजह से उन्हें कोर्ट में घसीटा गया लेकिन बाद में उन पर कोई आरोप सिद्ध ना होने की वजह से कौर्ट से छुट्टी मिल गयी |
इस दौरान उन्होंने अपनी एक फिल्म कम्पनी ABCL की शुरवात की जो काफी घाटे में गयी | इस दौरान उनके पुराने मित्र अमर सिंह ने उनकी मदद की | इसी वजह से अमिताभ बच्चन ने उनके राजनितिक दल “समाजवादी पार्टी” को सहयोग देना आरम्भ कर दिया | Amitabh Bachchan अमिताभ बच्चन की पत्नी जया बच्चन को समाजवादी पार्टी का टिकट मिला और वो राज्यसभा सदस्य बनी | बच्चन इसके बाद राजनीती के केवल समाजवादी पार्टी को सहयोग करने लगे | |
करियर का ढलान और अस्थायी रिटायरमेंट का दौर 1988–1992
1988 में अमिताभ Amitabh Bachchan ने फिर फ़िल्मी करियर में आगाज किया और “शंहशाह” फिल्म से उन्होंने दमदार शुरुवात की | यह फिल्म तो बॉक्स ऑफिस पर काफी हिट रही लेकिन इसके बाद ही फिल्मो में उनका जादू फीका पड़ गया | 1989 में आयी फिल्म जादूगर , तूफान और मै आजाद हु बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुह गिरी | इसी बीच 1991 “हम” फिल्म में उनका दमदार अभिनय देखने का मौका मिला लेकिन उनकी चमक फीकी पड़ रही थी | 1990 में “अग्निपथ” में उंनका अलग ही अवतार नजर आया और माफिया डॉन के अपने रोल के लिए उन्हें पहला National Film Award for Best Actor मिला | 1992 में खुदा गवाह फिल्म के रिलीज होने के बाद उन्होंने पांच सालो तक फिल्मो से अस्थायी रिटायरमेंट ले लिया था |
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