सचिन तेंदुलकर

सचिन तेंदुलकर

सचिन तेंदुलकर क्रिकेट के इतिहास में एक ऐसा सितारा जो God of Cricket माना जाता है। आज हम शेयर करेंगे महान बल्लेबाज Sachin Tendulkar Biography in Hindi. क्रिकेट इतिहास में सचिन तेंदुलकर एक ऐसा नाम है, जो हर क्रिकेट प्रेमी के दिल पर राज करता है। सचिन एकमात्र ऐसे बल्लेबाज हैं जिन्होंने सौ शतक को पूरा कर दुनिया के सामने नामुमकिन सा रिकॉर्ड रखकर एक नया इतिहास रच दिया।

सचिन के Fans सचिन तेंदुलकर को ऐसे ही मास्टर ब्लास्टर नहीं कहते हैं। पूरी दुनिया के Cricket प्रेमी उन्हें God of Cricket के नाम से पहचानते है। "Sachin Tendulkar" ने क्रिकेट में महान बनने का सफर 15 साल की उम्र से शुरू किया था और आज वह दुनिया के एक महान क्रिकेटर शख्सियत के रूप में जाने जाते हैं। इस महान बल्लेबाज की जीवन पर आधारित एक फिल्म सचिन अ बिलियन ड्रीम्स बनाई गई है, जिसमें आप Sachin Tendulkar जीवन को करीब से देख सकते हैं।

बचपन 
सचिन तेंदुलकर का जन्म 24 अप्रैल 1973 मैं मुंबई शहर में हुआ। सचिन के पिता रमेश तेंदुलकर एक बेहतरीन novelist (लेखक) थे और सचिन की माता "रजनी तेंदुलकर" एक इंश्योरेंस कंपनी में काम करती थी। सचिन के दो भाई है जिनका नाम नितिन और अजीत है। उनकी एक बहन भी है, जिसका नाम सविता है। Sachin Tendulkar बचपन से एक शैतान टाइप के बच्चे थे। जो आए दिन अपने साथी और सहपाठियों से लड़ाई झगड़े किया करते थे। इतनी शैतानियों को देखकर कभी-कभी उनके पिता रमेश तेंदुलकर दुखी भी हो जाया करते थे।

शिक्षा और इंटरेस्ट
सचिन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा "शारदा आश्रम विद्या मंदिर" से ग्रहण की। Sachin Tendulkar पढ़ने में ज्यादा अच्छे नहीं थे। उनका मन टेनिस और क्रिकेट खेलने में ज्यादा लगता था। वह बचपन से ही क्रिकेट खेलने के दीवाने थे। सचिन के आए दिन लड़ाई-झगड़े को दिखते हुए उनके बड़े भाई ने उन्हें आचरेकर क्रिकेट अकैडमी मैं क्रिकेट सीखने के लिए प्रेरित किया। दरअसल उनके भाई चाहते थे कि सचिन लड़ाई झगड़ों से अपना ध्यान हटाकर कहीं और लगाएं।

आचरेकर क्रिकेट अकैडमी के कोच रमाकांत आचरेकर ने एकेडमी एडमिशन टेस्ट के लिए सचिन को बुलाया तो सचिन ने झिझक के चलते अपना सौ प्रतिशत पर्फॉर्मेंस नहीं दिखा पाए। उनके बड़े भाई ने रमाकांत आचरेकर से बातचीत करते हुए उन्हें सचिन की झिझक के बारे में बताया। तो कोच रमाकांत आचरेकर ने सचिन को एक और मौका दिया और छिपकर सचिन का प्रदर्शन देखने लगे।

इस बार Sachin Tendulkar ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया। इसे देखकर रमाकांत आचरेकर काफी प्रभावित हुए और उन्हें क्रिकेट एकेडमी में एडमिशन मिल गया। अब यह वह समय था, जब सचिन का मन पूरी तरह से क्रिकेट में लग चुका था। वह कई घंटों शिवाजी पार्क में क्रिकेट कोच आचरेकर की देखरेख में नेट पर प्रेक्टिस किया करते थे। 

सचिन जब बिल्कुल थक जाते थे। तब उनके क्रिकेट कोच आचरेकर उनकी विकेट पर एक कॉइन रखकर सचिन और बाकी बच्चों से coin जीतने की bet रख दिया करते थे। bet यह होती थी, कि जो भी सचिन को इस पारी में आउट करेगा। कॉइन उसी का ही होगा। अगर सचिन किसी भी सूरत में आउट नहीं हुए तो वह कॉइन सचिन को मिल जाएगा। सचिन के द्वारा ऐसे ही जीते 13 coin आज सचिन सबसे ज्यादा दिल के करीब है।

सचिन के क्रिकेट स्टारडम को देखते हुए सचिन तेंदुलकर की लोकप्रियता बढ़ने लगी थी। जिस स्कूल में सचिन को लड़ाई-झगड़ों के चलते बेकार समझा जाता था। लोकल क्रिकेट सर्कल मैं अब उनकी अलग ही तस्वीर बन रही थी और लोग उनके प्रदर्शन को देखकर बोलने लगे थे कि वह आगे चलकर एक बहुत बड़े क्रिकेटर बनेंगे। स्कूल क्रिकेट से हटकर वह क्लब क्रिकेट भी खेलते थे।

वे "जॉन ब्राइट क्रिकेट क्लब" का हिस्सा बन गए और आगे चलकर वह क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया के लिए भी खेले। उस समय उनकी उम्र महज 14 साल थी। समय बीतने के साथ-साथ उन्होंने फास्ट बॉलर बनने का मन बनाया। सचिन ने एमआरएफ पेस फाउंडेशन जाकर फास्ट बॉलर की ट्रेनिंग लेने लगे। लेकिन वहां एक फास्ट बॉलर डेनिश लिली ने उन्हें सुझाव दिया कि वह अपनी बल्लेबाजी पर ध्यान केंद्रित करें और बॉलिंग को ट्राई ना करें।

लोकप्रियता और कैरियर 
उस समय मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन ने जूनियर क्रिकेट टूर्नामेंट ऑर्गेनाइज किया। जिसमें Sachin Tendulkar ने भी ऐसा लिया। इस मैच को देखने के लिए उस टाइम के मशहूर क्रिकेटर सुनील गावस्कर आए हुए थे। उस टूर्नामेंट में सचिन ने बहुत ही बेहतर प्रदर्शन किया। लेकिन फिर भी वह best junior cricket award के विजेता नहीं बन पाए। इस वजह से सचिन बहुत दुखी हो गए। लेकिन सुनील गावस्कर उनसे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हें अपने अल्ट्रा पैड गिफ्ट किए और आगे बेहतर खेलने के लिए प्रोत्साहित किया।

1987 के हो रहे वर्ल्ड कप में सचिन तेंदुलकर ने एक बॉल मैन की भी भूमिका निभाई। अगले साल 1988 में सचिन ने जितने भी मैच खेले सभी मैं शतक बनाया। वह एक बार उस टाइम के बेहतरीन क्रिकेटर विनोद कमली के पार्टनरशिप में खेले। इसी दौरान उस मैच में दोनों ने 664 रन बनाए। जिसमें से सचिन ने अकेले 326 रन नॉट आउट बनाए। इस रिकॉर्ड तोड़ पार्टनरशिप को देखते हुए दूसरी टीम ने मैच खेलने से इंकार कर दिया।

इन सब के बाद सचिन तेंदुलकर ने 11 दिसंबर 1988 में सिर्फ 15 साल की उम्र में डोमेस्टिक क्रिकेट में प्रवेश किया और पहले ही मैच में शतक जड़ दिया। इस मैच ने सचिन को youngest indian to score a century on debut और बेहतर क्रिकेटर बना दिया। इसके बाद सचिन ने ईरानी ट्रॉफी और दलीप ट्रॉफी के दोनों ही पहले matches में शतक जड़ दिया और डोमेस्टिक क्रिकेट में sachin tendulkar ने डबल शतक भी लगाया। इसके बाद उनका इंटरनेशनल क्रिकेट खेलने के लिए चयन हो गया।

अंतर्राष्ट्रीय सफर 
घरेलू क्रिकेट में धूम मचाने के बाद Sachin Tendulkar अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के लिए चयनित किए गए। आप यह बात जानकर हैरान रह जायेंगे कि वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 15 साल की उम्र मैं खेलने लग गए थे। तेंदुलकर ने अपना पहला अंतरराष्ट्रीय मैच पाकिस्तान के खिलाफ खेला था। इस सीरीज के बाद वह न्यूजीलैंड और इंग्लैंड सीरीज में भी खेले और इंग्लैंड के खिलाफ सचिन ने एक जबरदस्त शतक जड़ दिया।

महज 19 से 20 साल तक की उम्र होने तक। उन्होंने टीम में अपनी जगह बना ली। इसके बाद आया 1996 का विश्व कप। इस विश्व कप के दौरान सचिन इस टूर्नामेंट के highest run scorer बने। वर्ल्ड कप के बाद उसी साल में एक मैच में नवजोत सिंह सिद्धू और सचिन ने शतक लगाया। इन दोनों के शतक के कारण वह पहला ऐसा मैच बना जिसमे इंडिया ने 300 से ज्यादा रन बनाए।

यही वह समय था जब सचिन तेंदुलकर को भारत की नई रन मशीन कहा जाने लगा था और वह महान क्रिकेटर बनने की सीढ़ी चढ़ रहे थे। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ तीन लगातार शतक भी लगाए। अब एक ऐसा मैच आया जिसमें दुनिया के महान बल्लेबाज सचिन का सामना सबसे महान स्पिनर शेन वॉर्न से होने वाला था। तेंदुलकर ने इस सीरीज में धूम मचा दी। सचिन ने एक मैच में 204 रन बनाए इसमें से 111 रन शेन वॉर्न की बॉल पर थे।

मुश्किल समय
सचिन तेंदुलकर की जिंदगी में सब कुछ सही चल रहा था लेकिन अचानक कुछ ऐसा हुआ जो वह नहीं चाहते थे। उनके पिता रमेश तेंदुलकर चल बसे यह हादसा 1999 के वर्ल्ड कप के दौरान हुआ। जब सचिन को विश्व कप बीच में ही छोड़ कर घर वापस आना पड़ा। लेकिन अगले ही मैच के लिए सचिन वापस भी आ गए और आते ही उन्होंने शानदार शतक जड़ दिया। उन्होंने यह पारी अपने पिता को समर्पित करी।

इसके बाद उनको कप्तानी मिली लेकिन कप्तानी उन्हें कुछ जमी नहीं। तो उन्होंने सन 2000 मैं कप्तानी से इस्तीफा दे दिया। Sachin Tendulkar ने 2001 और 2002 में टेस्ट मैच में काफी अच्छा प्रदर्शन किया। उन्होंने सन 2000 में डोनाल्ड ब्रेडमैन के 24 सेंचुरी के रिकॉर्ड को भी तोड़ दिया। इसके बाद चार मैचों में सचिन का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा। वह चार मैचों में से तीन मैच में शून्य पर आउट हो गए।

फिर सचिन ने 2003 के वर्ल्ड कप में 11 मैचों में 673 रन बनाए और टीम को फाइनल तक पहुंचाया। लेकिन इसी साल हुए ऑस्ट्रेलिया टूर में वह अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए। इस बात को कभी नकारा नहीं जा सकता कि 2003 सचिन के टेस्ट करियर के लिए सबसे बुरा साल रहा। इसके बाद उनके कोहनी मैं चोट लगने के कारण वह एक साल तक क्रिकेट के मैदान से बाहर रहे।

सचिन ने 2005 में फिर से क्रिकेट में वापसी की और फिरोज शाह कोटला के मैदान पर शतक जड़ दिया।लेकिन इसके बाद सचिन ने आने वाले 17 innings मैं कोई शतक नहीं लगाया। यह उनके कैरीयर का अब तक का सबसे लंबा समय था जब उन्होंने कोई शतक नहीं लगाया था। इसके बाद वह 2007 वर्ल्ड कप की तैयारी में लग गए। लेकिन किस्मत अभी भी उनका साथ नहीं दे रही थी। इस साल भी वह out of form ही रहे।

वापसी 
सचिन ने खूब प्रैक्टिस कर फॉर्म में वापस आकर एक सीरीज में इतने रन बनाए कि वह मैन ऑफ सीरीज बन गए। इसी साल भारत के वह पहले ऐसे खिलाड़ी बने जिसने टेस्ट मैच में 11000 रन पूरे कर लिए। इससे अगली सीरीज में भी सचिन ने इंग्लैंड के खिलाफ इंडिया के लिए सबसे ज्यादा रन बनाए और इसी साल ही सचिन ने ब्रायन लारा के टेस्ट मैचों में 11953 वाले रिकॉर्ड को भी तोड़ दिया। इस बार सचिन ने अपना बेहतर प्रदर्शन किया।

इसके बाद आया 2011 का वर्ल्ड कप। यह विश्व कप सचिन की जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण टूर्नामेंट था। सचिन को पता था, अगर वह यह वर्ल्ड कप ना जीत सके तो फिर कभी वह अपने करियर में विश्व कप ना जीत पाएंगे। इसीलिए सचिन ने इस वर्ल्ड कप में सबसे ज्यादा रन बनाए और नतीजे के तौर पर वर्ल्ड कप India ने जीत लिया। यह विश्व कप जीतने के बाद सचिन का अधूरा करियर पूरा हो चुका था, जो उनका सपना भी था।

इसके बाद सचिन ने अगले ही साल अपने 100 शतक पूरा कर लिये और क्रिकेट जगत में एक ऐसा रिकॉर्ड कायम कर दिया जिसे शायद ही कोई क्रिकेटर तोड़ पाए। इसके अगले साल ही सचिन ने 2013 में रिटायरमेंट ले लिया।

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